Birsa Munda - Indian Tribal Freedom Fighter

बिरसा मुंडा, एक ऐसी शख्सियत की  जिन्होंने ब्रिटिश शासन को दांतों तले चने चबवा दिए। बिरसा जिन्हें लोग भगवान की तरह पूजते हैं। अपने आंदोलन और विचारधारा से ब्रिटिश शासन की दिक्कते बढ़ी एवम आम जनता का काफी भला हुआ। अपनी सुधारवादी प्रक्रिया के कारण लोग इनसे काफी प्रेरित हुए। आत्मसुधार, एकेश्वरवाद ओर अपने नैतिक आचरण से उपदेश दिए जो जिससे उनके अनुयायियो को काफी प्रेरणा मिली।

बिरसा मुंडा कौन थे? (Who is Birsa Munda)


बिरसा मुंडा, भारतीय आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी एवम आदिवासी नेता थे। उन्हें को 'धरती अब्बा' के नाम से भी जाना जाता हैं। बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 को बंगाल प्रेसीडेंसी के उलिहातु (Ulihatu) में हुआ जो अब के समय मे झारखंड के खूंटी जिले में स्थित है। उनका नाम प्रचलित मुंडा प्रथा के अनुसार रखा गया था। वे बिरसा भगवान के नाम से भी जाने जाते थे उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा सलगा (Salga) में शिक्षक जयपाल नाग के मार्गदर्शन में प्राप्त हुई थी एवं बिरसा मुंडा के गुरु का नाम आनंद पांडेय था।


 बिरसा मुंडा आंदोलन (Birsa Munda Movement)


यह सन 1895 की बात है जब यह आंदोलन शुरू हुआ। 21 वर्षीय युवक बिरसा मुंडा ने प्रारम्भ किया जिससे कारण ब्रिटिश सरकार की पैरो तले जमीन खसक गई। बिरसा एवम उनके साथी सन 1895 से 1900 तक छोटा नागपुर में ब्रिटिशों की प्रभुत्ता को सदैव चुनौती देते रहे। यह विद्रोह बाद में 'बिरसा विद्रोह' के नाम से प्रसिद्ध हुआ। यह विद्रोह मुख्य रूप से 'बिरसा मुण्डा' के नेतृत्व में 'मुण्डा' आदिवासियों के द्वारा किया गया था। इस आंदोलन का उदय परंपरागत रूप से प्रचलित सामूहिक कृषि पर जागीरदारों, ठेकेदारों, सूदखोरों के अत्यधिक शोषण ओर अकाल के समय में लगान की माफी की मांग न पूरी होने के कारण हुआ। बता दें कि बिरसा मुण्डा ने 'उलगुलान' की उपाधि धारण कर स्वयं को भगवान का दूत घोषित कर दिया था।


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ब्रिटिश सरकार में हड़कंप मच जाने से उन्हें गिरफ़्तार कर हजारीबाग केन्द्रीय कारागार में 2 साल की सजा दी गयी। लेकिन यह उनके मजबूत मंसूबो को रोक नही पाई। बिरसा और उनके शिष्यों ने क्षेत्र की अकाल पीड़ित जनता की सहायता करने की पहले से ही ठान रखी थी और यही कारण रहा कि उन्हें अपने जीवन काल में ही एक महापुरुष का दर्जा मिल गया था। उन्हें उस इलाके के लोग "धरती बाबा" के नाम से पुकारते एवम उनकी पूजा करते थे। उनका प्रभाव काफी बढ़ चुका था, इसी कारण इलाके के मुंडाओं (Mundas) में संगठित होने की चेतना जाग्रत हुई। सन 1895 से 1900 के बीच बिरसा, उनके साथियों और अंग्रेज सिपाहियों के बीच युद्ध होते रहे। अगस्त 1897 में मुंडा और उनके लगभग 400 सिपाहियों ने तीर कमानों से लैस होकर खूंटी थाने पर धावा बोला दिया था। सन 1898 में तांगा नदी के किनारे मुंडा के अनुयायियों की भिड़ंत अंग्रेजी सेनाओं से हुई जिसमें पहले तो अंग्रेजी सेना की हार हुई लेकिन इसका अंजाम लोगो के लिए सही नही था। उस संघर्ष के बाद बहुत से आदिवासी नेताओं की गिरफ़्तारियां हुईं। जनवरी 1900 में बिरसा मुंडा अपनी जनसभा संबोधित कर रहे थे तब डोमबाड़ी पहाड़ी पर एक और संघर्ष हुआ था, जिसमें बहुत सारी औरतें और बच्चे मारे गये थे, बाद में बिरसा के कुछ शिष्यों की गिरफ़्तारी भी हुई ओर अंत में बिरसा को 3 फरवरी, 1900 को चक्रधरपुर में गिरफ़्तार कर लिया गया

बिरसा मुंडा की मृत्यु कब और कैसे हुई?


बिरसा की मृत्यु 9 जून, 1900 को रांची कारागर में सिर्फ 25 वर्ष की आयु में हुई थी। अधिकारियों ने दावा किया था कि उनकी मृत्यु हैजे (Cholera) से हुई लेकिन इसमें संदेह है कइयों का मानना है कि उन्हें ज़हर देखकर मारा गया था।


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Conclusion :-

बिरसा मुंडा एक स्वतन्त्रता क्रांतिकारी जिन्हीने अपनी नैतिकता और बहादुरी से बहोत प्रभावित किया है। आज भी कई राज्यो में जैसे बिहार, उड़ीसा, झारखंड, छत्तीसगढ, पश्चिम बंगाल ओर कुछ हद तक मध्यप्रदेश के इलाकों के आदिवासी बिरसा को भगवान की तरह पूजते है। 9 जून को बिरसा मुंडा के बलिदान दिवस के रूप में मनाया जाता है। बिरसा के सम्मान में रांची के हवाई अड्डे का नाम बदलकर बिरसा मुंडा हवाई अड्डा रखा गया एवम बिरसा मुंडा फुटबॉल स्टेडियम भी रांची में स्थित हैं।


2 टिप्पणियाँ

  1. Bohot hi achhi jankari di hai and overall blog jo hai wo bhi achha hai....


    vaise hamane bhi Birsa ke bare me kuchh marathi me likha hai, uski link niche di gayi hai...

    https://www.ajaychaityaedutech.com/2019/11/birsa-munda.html

    जवाब देंहटाएं

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